लाहौल की गाहर घाटी में मनाया गया हालडा उत्सव
लकड़ी की जलती मशालों से भगाई गई बुरी शक्तियां
प्रिंट स्टोरीज ब्यूरो कुल्लू
हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पीति में अब मशालों के उत्सव हालडा का आगाज हो गया है। लाहौल घाटी के गाहर इलाके में देर रात हालडा उत्सव मनाया गया। वहीं अब लाहौल के अन्य इलाकों में भी अलग-अलग तिथियां में हालडा उत्सव मनाया जाएगा। लाहौल स्पीति में नए साल के रूप में स्थानीय लोगों के द्वारा यह उत्सव मनाया जाता है और लकड़ी की बड़ी-बड़ी मशाले भी जलाई जलाई जाती है। सभी लोगों के द्वारा बीती रात के समय लकड़ी की बड़ी-बड़ी मशाले जलाई गई और अपने इष्ट देवता की भी पूजा अर्चना की गई। लाहौल घाटी में हालडा उत्सव एक प्रमुख त्यौहार है। जिसे स्थानीय लोग नए साल के रूप में भी मानते हैं। इस दौरान घाटी के लोग बुरी आत्माओं को मशाल तथा जुलूस निकालकर भागने की कोशिश करते हैं और मशाल लेकर सभी लोग जोर-जोर से हालडा हो हालडा हो बोलकर शोर मचाकर इस पर्व को मानते हैं। लाहौल घाटी में बौद्ध पंचांग के अनुसार शुरू होने वाले उत्सव को इस साल भी पारंपरिक रीति अनुसार के साथ मनाया गया। गाहर घाटी में उत्सव को मनाने के लिए लोग देर रात अपने घरों से बाहर निकले और एक जगह एकत्र होकर लकड़ी की मशाले जलाकर पुरानी सभी परंपराओं का निर्वाह किया गया। गाहर घाटी के निवासी कुंगा बौद्ध, तेंजिन, संजीव कुमार का कहना है कि इन दिनों लाहौल घाटी के सभी देवी देवता स्वर्ग प्रवास पर होते हैं और घाटी में पूरी शक्तियों का प्रभाव रहता है। बुरी शक्तियों से बचने के लिए ही आधी रात को मशालें जलाई जाती है। ताकि बुरी शक्तियों इलाके से दूर भाग सके। ऐसे में बीती रात के समय भी हालडा उत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया। उन्होंने बताया कि बौद्ध पंचांग के अनुसार ही इस उत्सव के लिए तिथि निर्धारित की जाती है और बौद्ध लामाओं के द्वारा लाहौल घाटी के अलग-अलग इलाकों के लिए यह तिथियां निर्धारित की गई है। ऐसे में बौद्ध पंचांग के अनुसार लाहौल घाटी के अन्य इलाकों में भी अब हालडा उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।